पहले कुछ दिनों तक चाहा - दूसरों के हिसाब से करूँ, फिर कुछ दिनों तक चाहा - अपने हिसाब से करूँ। अब कोई भी चाह क्यों करूँ !
हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ